एक मिनट जिंदगी
तुम हो तो हो जहाँ कहा
तुम ना भी हो यहाँ वहा
जिंदगी की पत्तो को
क्यों युही जकर लेना
बुझ गयी ये तिललियाँ
सुख गयी है पुतलियाँ
तुम तारो के गिनती कर लोगे
मैं हवाओं में ही तेहलूँगा , बादलों में भटकूँगा
ना ही सिर्फ ये मर्तबा , सन्तत-ए-सर्बदा
Comments
Post a Comment