मैं शाम हूँ

मैं शाम हूँ
मैं शाम हूँ
बिशाल बिरुप विराट हूँ
रात का ललाट मैं
दिन का स्वाभिमान हूँ
मैं शाम हूँ...
जुगनुओं का यार मैं
आसमा की डोर हूँ
सूर्य मेरे नाम का
कैद का सिपाही हूँ
मैं शाम हूँ...
अन्याय का हिरण्य हूँ
 न्याय-अंक क्या लिखूं
गले पे फंदा डाल के
मैं रात का कफ़न हूँ
मैं शाम हूँ...
 रात हूँ मैं काल का
वक़्त हूँ मैं चाप का
अंधेरो से भी क्या डरूँ
प्रकाश मेरे मुट्ठी में
जब खोलूं तो प्रभात हो
मैं शाम हूँ...
 दशेरो का रावण हूँ मैं
मथुरा का भी कंस हूँ
मैं जिक्र आउ दोहो पे
मैं रिक्त काल ग्रन्थ हूँ
मैं शाम हूँ...
नृसिंह मेरे साथ है
तो क्या नई ये बात है
मैं उत्तेजक ताप हूँ
तुमको मैं समा सकू
मैं गड्ढे हूँ चांद का
पैग़म-ए-प्यार का
तुम मुझको क्या समझ सको
फ़क़ीर हूँ मैं , दास हूँ
मैं शाम हूँ

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