समानांतर

टुटके हम दोनों में जो बचा वो ग़म सा है
उम्रभर आधा अधूरा अनगनन बिखरा सा है
बातों बातों में अनगिनत गुस्ताखी आके चुप रही
बर्क़ ए तज्जली सी है आंखें तेरी
याद ही बस तसल्ली सा है 
शब्द ही दुश्मन शब्द ही गुलशन
बातों की यही मझधार सी है
नोटबुक से फाड़े हर एक पन्ने
रोज़ ए जज़ा पे कुर्बान सा है

Comments

Popular Posts