लट-पट
बाहें भर के रोग लाया हूँ
इश्क़ -ए- बुखार तू क़ुबूल कर
बेखयाली कुछ नगमे है
तू भी अब अनसुना ना कर
हरा पत्ता तू पीपल का
अलग सी ख्वाहिश , रंग पीला ना कर
इश्क़ में डूबा हर एक लफ्ज़
निकले जुबां से कुछ इस तरह
की धड़कनें भी भूल जाएँ धड़कना
मैं बन्धा डोर में , आज साल गिरह
दूरी ये कम ना हो
मैं नींद में भी चल रहा
सोता हूँ कि देखु सपने
ए दिल क्या करूँ तु ही बता
मैं असल में तु ही हूँ
तेरी नकल नहीं
ना चाहे भी सांस भरू
तेरे आगे , मैं अटल नहीं
इश्क़-ए-गुलदस्ता तेरे पैरों पे
चाहत हैं , कुछ अकल नहीं
रात दिन पढ़ू तुमको
तुम प्यार पिरोये किताब हो
परछाई भी रंगीन हो तुमसे
क्या वादियों की शबाब हो
मैं कलम थामे लिख पड़ता हूँ
नोक से निकलती तो तुम ही हो
प्यार के दामन में जो भी हो हाहाकार
जान ले जाती तो तुम ही हो
जान ले जाती तो तुम ही हो
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